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27 मिनट पहलेलेखक: शिवेन्द्र गौरव
सीजेआई दिवाई चंद्रचूड़ के निधन के बाद जस्टिस संजीव खन्ना के 51 वें मुख्य न्यायाधीश बने। सीजेआई चंद्रचूड़ के निधन के बाद कल 11 नवंबर को जस्टिस खन्ना सीजेआई के पद की शपथ लेंगे।
जस्टिस हंसराज को इंदिरा ने परास्त किया, संजीव को विरासत में मिला
संजीव की विरासत मूर्ति की रही है। उनके पिता देवराज खन्ना चर्च के जज रहे हैं। वहीं चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे। उन्होंने इंदिरा सरकार के गठन के निर्णय और राजनीतिक समझौते को बिना कोई सुनवाई जेल में रखे जाने का विरोध किया था।
1977 में बुजुर्गों के आधार पर उनके प्रमुख न्यायधीश तय माने जा रहे थे, लेकिन जस्टिस एमएच बेग को सीजेआई बना दिया गया। इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से छुट्टी दे दी। इंदिरा की सरकार में उतरने के बाद वह चौधरी चरण सिंह की सरकार में 3 दिन के लिए कानून मंत्री भी बने थे।
जस्टिस हंसराज खन्ना 1971 से 1977 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे।
संजीव खन्ना अपने चाचा से प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पिलो लॉ सेंटर से एलएलबी की। शुरूआती दौर में जस्टिस खन्ना ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से अविश्वास शुरू किया। इसके बाद दिल्ली सरकार के आयकर विभाग और व्यक्तिगत मामलों के लिए स्टैंडिंग काउंसिलिंग जारी रही। स्टैंडिंग काउंसेल का आम भाषा में अर्थ सरकारी वकील होता है। साल 2005 में जस्टिस खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय के जज बने। 13 साल तक दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहने के बाद 2019 में जस्टिस खन्ना का प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के जज के पद पर हो गया।
संजीव खन्ना के उच्च न्यायालय के जज से सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट भी मज़बूल में रहा था। 2019 में जब सीजेआई रंजन गोगोई ने नाम की मोनिका की, तब जजों की वरिष्ठता सूची में उनके 33वें स्थान पर थे। गोगोई ने उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के लिए बहुमत काबिल नियुक्त किया।
उनके इस मुकदमे में दिल्ली के खिलाफ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस कैलाश सीरियस ने तब के राष्ट्रपति पद के लिए अनुमति पत्र भी लिखा था। कैलाश ने लिखा था-
32 जजों की अनदेखी ऐतिहासिक भूल होगी।
इस विरोध के बावजूद राष्ट्रपति ने जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के सहायक के रूप में नियुक्त किया, 18 जनवरी 2019 को संजीव ने पद ग्रहण कर लिया।
जस्टिस खन्ना ने सेम सेक्स डेरे केस से जुड़ी फाइल की सुनवाई खुद को दूर रखी थी। इसके पीछे उन्होंने व्यक्तिगत कारण बताया था। जुलाई 2024 में समलैंगिक विवाह मामले की समीक्षा पिटीशन की सुनवाई के दौरान 4 जजों की बेंच बनाई गई थी, इसमें जस्टिस खन्ना भी शामिल थे। समीक्षा से पहले जस्टिस खन्ना ने कहा कि उन्हें इस मामले से छूट दी जाए। कानूनी भाषा में इसे खुद को केस से अलग करना कहा जाता है। जस्टिस खन्ना के अलग-अलग लाइव की सुनवाई अगली बेंच के होने से लेकर टालनी तक।
आर्टिकल-370, इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे जस्टिस खन्ना के बड़े फैसले
अपने 6 साल के सर्वोच्च न्यायालय के लेखकों में जस्टिस खन्ना 450 जजमेंट बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने खुद 115 जजमेंट लिखे। इसी साल जुलाई में जस्टिस खन्ना और जस्टिस दीपकंकर स्टाफ की बेंच ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत दे दी थी। 8 नवंबर को एएमयू से जुड़े जजमेंट में जस्टिस खन्ना ने यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का समर्थन किया है।
कॉलेजियम की व्यवस्था के लिए सर्वोच्च न्यायालय के सीजेआई बने
उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को आतिशबाजी के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम कहते हैं। इसमें सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। केंद्र ने इसे मंजूरी देते हुए नए सीजेआई और अन्य जजों की पेशकश की है।
परंपरा के तहत सर्वोच्च न्यायालय में अनुभव के आधार पर सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। यह प्रक्रिया एक निर्देश के अंतर्गत आती है, जिसे एमओपी यानि ‘मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर फॉर द अपॉइंटमेंट ऑफ सुप्रीम कोर्ट जजेज’ कहते हैं।
साल 1999 में पहली बार एमओपी तैयार हुआ। यही दस्तावेज़, न्यायाधीशों के अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया में केंद्र, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय का दायित्व तय करता है। एमओपी और कॉलेजियम के सिस्टम को लेकर संविधान में कोई अनिवार्यता या कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन इसी के तहत जजों की रचनाएं होती आ रही हैं। हालांकि 1999 में एमओपी तैयार होने से पहले ही सीजेआई के बाद सबसे वरिष्ठ जज के साथ मिलकर सीजेआई बनाने की परंपरा है।
वर्ष 2015 में संविधान में एक संशोधन करके राष्ट्रीय ढांचागत ढांचा आयोग (एनजेएसी) बनाया गया था, यह जजों के संविधान में केंद्र की भूमिका बढ़ाने वाला काम था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक अधिकार दे दिया। इसके बाद एमओपी पर बातचीत जारी रही। पिछले साल भी केंद्र सरकार ने कहा था कि अभी भी एमओपी को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है।
सबसे वरिष्ठ जज को सीजेआई बनाने की परंपरा अब तक दो बार टूट चुकी है
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सीजेआई, सबसे वरिष्ठ जज के बजाय अन्य जजों की पेशकश के खिलाफ दो रिजर्वेशन बनाए। 1973 में इंदिरा ने जस्टिस एएन रे को सीजेआई बनाया, जबकि उनके अलावा सीनियर थ्री जज- शेलेट, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर को भी पदस्थापित किया गया।
जस्टिस रे को इंदिरा सरकार की पसंद का जज माना जाता था। केशवानंद भारती मामले में एक दिन बाद ही जस्टिस रे को सीजेआई बना दिया गया। 13 जजों की बेंच ने 7:6 के बहुमत से यह फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस अल्पमत वाले जजों को शामिल किया गया।
जनवरी 1977 में इंदिरा ने एक बार फिर से टोडी परंपरा शुरू की। उन्होंने सबसे वरिष्ठ जज हंसराज खन्ना की जगह जस्टिस एमएच बेग को सीजेआई बनाया था।
छोटे से मामले में 5 बड़े मामले की सुनवाई जज्बात
पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल करीब 2 साल का है। इसकी तुलना में सीजेआई संजीव खन्ना का किरदार छोटा होगा। जस्टिस अटॉर्नी जनरल जस्टिस सिर्फ 6 महीने के लिए पद पर रहेंगे। 13 मई 2025 को उन्हें धारण करना है।
इस इलाक़े में जस्टिस खन्ना को वैवाहिक बलात्कार केस, इलेक्शन कमीशन के सदस्यों के अपार्टमेंट के एसोसिएट्स, बिहार जातिगत जनसंख्या के समर्थक, सबरीमाला केस की समीक्षा, राजद्रोह (देशद्रोह) की संवैधानिकता जैसे कई बड़े मामलों की शिक्षा दी जाती है।
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कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम के समर्थक को दोषी ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें इस अधिनियम को रद्द करते हुए कहा गया था कि यह विचारधारा का उल्लंघन है। पूरी खबर पढ़ें…