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सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट की तानाशाही रखी: कहा, ‘इसे खत्म करना बच्चे को पानी के साथ क्रांतिकारी जैसा’; कामिल-फाजिल की डिग्रियां असंवैधानिक


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  • सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट को बरकरार रखा सीजेआई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को बरकरार रखा

58 मिनट पहलेलेखक: शिवेन्द्र गौरव

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उत्तर प्रदेश में मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट के आरोपी को दोषी ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें एक्ट को रद्द करते हुए कहा गया था कि यूपी का मदरसा एक्ट का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों से मिलने वाली कामिल और फाजिल की डिग्रियों को भी असंवैधानिक करार दिया है।

खबरों में जानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा है, मदरसा कानून क्या है, हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक क्यों बताया था और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मदरसे की पढ़ाई में क्या बदलाव आएंगे…

सरकार ने मदरसा अधिनियम पर रोक लगाने के लिए इसे लागू किया

वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश में धनुर्धर सिंह यादव की सरकार के समय मदरसा शिक्षा अधिनियम लाया गया था। उत्तर प्रदेश में मदरसों के प्रशासन के लिए अधिनियम के तहत एक फ्रेमवर्क बनाया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना के लिए मदरसों की संस्था की झलक और निगरानी की गई। बोर्ड से निश्चित करने के लिए कुछ पात्रता मानदंड तय किए गए थे। मदरबोर्डसन के लिए सिलेबस की तैयारी, टीचिंग मटेरियल और टीचर्स को ट्रेनिंग देने का काम किया गया था।

मदरसा अधिनियम के खिलाफ़ अदालत में याचिका, 5 प्रमुख आलोचनाएँ की गईं

मदरसा एक्ट के खिलाफ सबसे पहले 2012 में दारुल उलूम वारसिया नाम के मदरसा के प्रबंधक सिराजुल हक ने पदयात्रा की थी। फिर 2014 में यूपी सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के डिप्टी अब्दुल अजीज और 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने फॉर्मूले का खाका तैयार किया था। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो तीर्थयात्रियों की जगह ली। 2023 में अंसमान सिंह टैगोर ने पोस्ट ऑफिस की स्थापना की। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) का यह भी कहना था कि किसी को भी धार्मिक शिक्षा लेने का अधिकार है, लेकिन इसे बुनियादी शिक्षा के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इन सभी मामलों का नेचर एक था। इलिनोइस उच्च न्यायालय ने एक साथ सभी आवेदनों को शामिल किया।

इन प्रपत्रों में इन 5 बिन्दुओं को लेकर अधिनियम का विरोध किया गया-

  • मदरसा अधिनियम, धार्मिक आधार पर विभिन्न प्रकार की शिक्षा को बढ़ावा देता है, इसलिए यह स्वतंत्रता के सिद्धांत और मूल अधिकार के विरुद्ध है।
  • शिक्षा के अधिकार से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत 14 वर्ष की आयु तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में मदरसे असफल हैं।
  • शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 मदरसों को बाहर रखने वाले बच्चों को पूर्ण शिक्षा नहीं मिल सकती।
  • मदरसन में आधुनिक विषयों की पढ़ाई से लेकर अधिकांश इस्लाम की धार्मिक शिक्षा दी जा रही है।
  • यह अधिनियम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की धारा 22 के विपरीत है, जिसमें हायर स्टडीज की डिग्री देने के नियम हैं।

यूपी सरकार की अवैध मदरसों की जांच से मामला पकड़ा गया

यूपी सरकार का कहना था कि यह सिक्योरिटी एडवाइजरी से मिले हुए हैं और अवैध तरीके से सेमार्संस का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने सर्वेक्षण कर निर्णय लिया। इसके बाद हर जिले में 10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक 5 स्क्वैट्स टीमों का सर्वे किया गया। इस समय सीमा को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ाया गया।

सर्वेक्षण में प्रदेश में करीब 8,441 मदरसे ऐसे मिले, सिद्धांत नहीं था। अक्टूबर 2023 में यूपी सरकार ने एसआईटी का गठन किया था। एसआईटीमैथर्सन की कथित विदेशी फंडिंग की जांच चल रही है। उत्तर प्रदेश में 25 हजार मदरसे हैं। इनमें से लगभग 16,500 मदरसों को स्टेट मदरसा शिक्षा परिषद से सिद्धांत प्राप्त हुआ है। इनमें से 560 मदरसे ऐसे भी हैं, जिनमें सरकारी अनुदान भी शामिल है।

उच्च न्यायालय ने मदरसा अधिनियम को अवैधानिक अधिकार दिया

22 मार्च 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मदरसा शिक्षा अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने के लिए दायर याचिकाओं को रद्द कर दिया था। कोर्ट की बेंच ने कहा कि यह अधिनियम, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 (समानता का अधिकार) और 21-ए (शिक्षा का अधिकार) के खिलाफ है।

मदरसा बोर्ड ने बच्चों की शिक्षा को लेकर भेदभाव किया है। जब सभी धर्मों के बच्चों को हर वर्ग में धार्मिक शिक्षा मिल रही है, तो विशेष धर्म के बच्चों को शिक्षा तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।

उद्धरणछवि

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार कोशारसन के बच्चों की गिरफ्तारी की योजना बनाने के निर्देश नीचे दिए गए हैं।

न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ और मदरसा- अजीजिया इजाजुतुल उलूम के प्रबंधक अंजुम कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 5 अप्रैल, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय में पहली बार सुनवाई हुई। कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

कोर्ट ने कहा था,

उद्धरणछवि

उच्च न्यायालय प्रथम दृष्टया सही नहीं है। यह कथन गलत है कि मदरसा एक्ट बचपन का उल्लंघन करता है। मदरसन के छात्रों को दूसरे स्कूल में नामांकन का निर्देश देना भी ठीक नहीं है। देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है। बौद्ध भिक्षुओं की पढ़ाई कैसे होती है?

उद्धरणछवि

यूपी सरकार ने भी हाई कोर्ट में मदरसा एक्ट का खंडन किया था। तब कोर्ट ने कहा था- दोस्ती का मतलब है, ‘जियो और जियो दो। अगर सरकार कहती है कि मदरसे के बच्चों को शिक्षा भी दी जाए तो यह देश की भावना है।’

22 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

मदरसा संविधान, सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय की 2 गलतियाँ बताईं

5 नवंबर 2004 को CJI डी. चंद्रचूड़ की राष्ट्रपति के साथ सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट के फैसले में 2 गलतियां बताईं…

  • ‘हाईकोर्ट ने यह अन्यायपूर्ण किशार्सन की पढ़ाई, शिक्षा के अधिकार से जुड़े अनुच्छेद-21 का उल्लंघन किया है। क्योंकि राइट टू एजुकेशन, अल्पसंख्यक छात्र-छात्रा पर लागू नहीं होता है।’
  • ‘यह फेल भी गलत है कि धार्मिक शिक्षा देने के लिए मदरसा गेरेवा का अधिकार अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षित है। ‘क्योंकि मदरसे वह भी धार्मिक शिक्षा देते हैं, मूल रूप से शिक्षा ही देते हैं, मदरसा अधिनियम, समविद्या सूची के तहत राज्य सरकार को अनुमति प्राप्त क्षमता से बाहर नहीं जा सकते।’

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही मदरसे कामिल और फाजिल की डिग्री भी नहीं दे पाई। अदालत के फैसले के अनुसार, मदरसे को 12वीं तक की डिग्री नहीं दी जा सकती, लेकिन कामिल और फाजिल की डिग्री सस्ती नहीं है।

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