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राजस्थान में पहली बार प्रदूषण ने स्कूल बंद किया: दिल्ली-हरियाणा, यूपी में भीलॉक; AQI बढ़ने से बच्चों पर क्या पड़ता है असर?


1 घंटा पहलेलेखक: शिवेन्द्र गौरव

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राजस्थान के खैरथल-तिजारा जिले में सरकारी आदेश के तहत सभी सैनिकों के 5वीं तक के बच्चों की छुट्टी कर दी गई है। ये पहली बार है जब राजस्थान में प्रदूषण के स्कूल बंद कर दिए गए। ये छुट्टियाँ 23 नवंबर तक रहेंगी। असल, दिल्ली में AQI यानी एयर क्वालिटी स्टाक 500 तक पहुंच गया है। यह बेहद खतरनाक स्तर का प्रदूषण कहा जाता है। दिल्ली से खैरथल तिजारा की दूरी 125 किलोमीटर है।

दिल्ली से सटे हरियाणा के गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जैसे इलाके भी गैस चैंबर बन गए हैं। एनसीआर के तहत आने वाले इन शौचालयों में पहले ही स्कूल बंद किए जा चुके हैं।

फरवरी में बोर्ड बोर्ड, फिर भी स्कूल बंद करना मजबूरी

दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में 10वीं बोर्ड कार्यकारिणी फरवरी में शुरू हो रही है। इसके पहले जनवरी में बच्चों के प्रैक्टिकल उदाहरण चलेंगे। अभी स्कूल में प्री-बोर्ड एग्जॉम का समय है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई में भी प्रदूषण के निशान आ रहे हैं।

दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन से जुड़े डॉक्टर हंसराज सुमन कहते हैं,

सरकार का स्कूल बंद करने का फैसला सही नहीं है। ऑनलाइन पढ़ाई ठीक से नहीं हो सकती। एग्ज़ाम सिर पर हैं। आज मेरी बाई की क्लास में 70 में से सिर्फ 37 दोस्त थे। सरकार को पहले से कुछ तैयारी करनी चाहिए थी।

वहीं दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम का कहना है कि घर के बाहर हवा खराब है, वहीं छोटे बच्चों को भी घर पर रखना उचित है। भले ही एग्जाम से पहले महीनों में पढ़ाई जरूरी है, लेकिन भयंकर प्रदूषण के बीच स्कूल नहीं चलाया जा सकता। सरकार का उदाहरण बंद करने का निर्णय सही है।

हालाँकि अपराजिता का यह भी कहना है कि सरकार अपने अजनबियों के पीछे है। वह कहते हैं,

कोविड के बीच सरकार ने जो तरीका अपनाया, अभी भी वही तरीका जारी किया है। साल के 10 महीने तक सरकार कोई तैयारी नहीं करती और नवंबर-दिसंबर महीने में स्कूल बंद करवाती है। बच्चों की सेहत का मामला है, इसलिए यही एक रास्ता बचता है।

8 प्रदूषकों की बुद्धि से जुड़ा है AQI

AQI खराब होने का मतलब हवा खराब होना है। हवा खराब होने के कारण इसमें 8 प्रदूषकों के स्तर देखे गए हैं। ये 8 पौलुस हैं-

  • पार्टिकोलिक मैटर (PM2.5)
  • पार्टिकोलिक मैटर (PM10)
  • ओजोन (O3)
  • कार्बन मोनोऑक्साइड
  • अंतिम संस्कार
  • 4
  • लेड
  • आमा

फैक्ट्री के मलबे, कूड़ा-करकट और जंगल के जंगलों से बने पदार्थ पॉल्यूटेंट हैं

ओजोन: जब पृथ्वी के ऊपरी द्वीप में होता है तो हमें सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाया जाता है, लेकिन जब यही ओजोन भूमि के समुद्र तट पर हवा होती है, तो प्रदूषक की तरह काम किया जाता है। ग्राउंड की ओजोन, इंडस्ट्रीज, इंडस्ट्रीज और पावर प्लांट की सजावट और सूरज की रोशनी के निशान से दिखाई देती है।

पार्टिकोलिक मैटर: (पीएम) यानी ठोस और बेईमानी के इंसानी बाल से भी प्यारा कन्न। 10 माइक्रोमीटर तक के पीएम को पीएम10 कहा जाता है। यह वनस्पतियों की कूड़ा-करकट या ऐसे उद्योगों से बनाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं, अनैच्छिक वस्तुओं को निकाला जाता है। वहीं 2.5 माइक्रोमीटर वाले पीएम 2.5 कार, पावर प्लांट, लकड़ी के जंगल, जंगल की आग से बने संयंत्र से बने हैं।

कार्बन मोनोऑक्साइड: ये एक रंगहीन और गंधहीन गैस है। प्लांट, पावर प्लांट और उद्योगों में जंगल के जंगल से निकल रहा है। समंदर के मौसम में कम तापमान के कारण बर्फबारी होती है, जब ठीक से पानी नहीं मिलता तो यह प्रदूषणकारी गैस की परतें होती हैं।

4%: यह जेल और आयल फ्यूल्स के जलाशय से पैदा हुआ है। यह नाक के रास्ते आसानी से अंदर जा सकता है, लेकिन ऐसा कोई बड़ा काम नहीं करता है, समय-समय पर मुंह से सांस लेने के दौरान इसे अंदर खींच लिया जाता है।

प्रदूषण से होने वाला कैंसर, दिल और गुर्दे की बीमारी, बच्चों में आनुवंशिक विकार

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि खन्ना कहते हैं,

लगातार साजोसामान में रहने से औसत आयु 5 वर्ष तक कम हो जाती है। हवा में मौजूद प्रदूषक पृथ्वी के मार्ग में शरीर में क्षति होने के बाद शरीर की क्षति होती है। प्रारंभिक शीघ्र नष्ट होने की संभावनाएँ होती हैं। इससे गंभीर का खतरा पैदा होता है।

रवि बताते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां के गर्भनाल से पोषण मिलता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रही महिलाओं में गर्भपात का खतरा होता है, पैदा होने वाले बच्चे में भी आनुवंशिक विकार का खतरा बढ़ जाता है।

सभी प्रदूषक अलग-अलग तरह से शरीर पर दिखते हैं

ओजोन- खांसी, सीने में दर्द की वजह अजीब है। इससे फेफड़े की काम करने की क्षमता कम हो जाती है। बबीता की गुड़िया और गंभीर हो जाती है। पार्टिकोलॉजिकल मैटर फेफड़े पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हार्ट अटैक भी कारण बन सकता है। वहीं कार्बन मोनोऑक्साइड के जहर से सांस से जुड़ी शर्त के अलावा बच्चों, बुजुर्गों को सबसे ज्यादा समस्या होती है। इसके बड़े पैमाने पर से मृत्यु भी हो सकती है।

सकल मोनोऑक्साइड, अमेरिका और डीजल स्टूडियो गैसें हैं। फेफड़ों के अलावा दिल की बीमारी भी हो सकती है। वहीं शरीर के अंदर लेड जाने से इसे पेशाब के रास्ते से बाहर भी जाना जाता है। इस प्रक्रिया में किडनी डैमेज हो सकता है।

डॉ. रवि खन्ना कहते हैं कि स्मॉग यानी धुंध में बाहर टहलने या जॉगिंग करने से बचना चाहिए। लोग देख रहे हैं कि प्लास्टिक है, ऐसे में खुले में बने रहना बेहतर रहेगा। यह सबसे खतरनाक है।

उन्होंने समझाते हुए कहा कि आम तौर पर हमारे फेफड़े में 3 लीटर तक हवा हो सकती है। हम सामान्य काम करने के दौरान 500 मिलियन वायु श्वास के माध्यम से और जगह लेते हैं।

वहीं, हमारा एयर इंटेक 1000 की उड़ान समय सीमा तक बढ़ जाती है। ऐसे में हम कम समय में प्रचुर मात्रा में प्रदूषण ले रहे हैं। ये और भी ज्यादा खतरनाक है, इसलिए जब भी AQI बढ़े, हमें केवल हो सके, घर के अंदर रहना चाहिए।

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