Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
Physical Address
304 North Cardinal St.
Dorchester Center, MA 02124
बिडर्स को प्राइमरी स्कूल में पहली से पाँचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए नौकरी पर रखा गया था।
छत्तीसगढ़ के 2,897 सचिवालय सचिवालय के आदेश के बाद सरकार ने नौकरियां खत्म कर दीं। लगभग 12 से 16 महीने तक कर्मचारियों की नौकरी चली गयी। अब ये सभी एडजस्टमेंट यानी नौकरी के बदले जॉब की मांग लेकर पिछले एक महीने से प्लान कर रहे हैं।
.
पहले पार्ट में आज आपको बताया गया है कि आखिर पूरा विवाद क्या है, बिजली आपूर्ति विभाग की नौकरी क्यों खत्म हुई, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा कि केंद्र के हालात के बीच ये सब हुआ? कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा कि ये संविधान इसके खिलाफ है। इस रिपोर्ट में जानिए विस्तार से पूरा सच…
ये शिक्षक जल विज्ञान, सामूहिक मुंडन, मतदाता सूची से नाम वापसी, यहां तक कि इच्छामृत्यु की मांग भी कर बताई गई है। कुछ दिन पहले 5 किमी की दण्डवत यात्रा भी निकली है।
सबसे पहले जानिए पूरा मामला क्या है
बी.एड असीट्रेट का ये पूरा मसला 2018 में एनसीटीई (नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर एजुकेशन) की ओर से एक बैच के बाद से शुरू हुआ। एनसीटीई भारत सरकार की वो बॉडी है, जो किसी भी कक्षा में अनुयायियों के लिए शेयरधारकों का मानक तय करती है। एनसीटीई ने बीएड में दाखिला लिया शौकीनों को निजीकरण के लायक माना गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया।
वर्ष 2018 में एनसीटीई ने बी.एड. कक्षा 1 से 5 तक दर्शन के लिए उपयुक्त बताया गया था।
अब पढ़ें 11 अगस्त 2023 को सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी:
“प्राइमरी स्कूल के प्रशिक्षकों के लिए योग्यता के आधार पर बी.एड. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) में शामिल होकर केंद्र सरकार ने संविधान और कानून के खिलाफ काम किया…ये आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के भी खिलाफ है। इन रेनॉल्ड में हमें इस भर्ती में कोई भी आर्द्र नहीं है कि इसे रद्द कर दिया जाए।”
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निर्णय के केन्द्र को असंवैधानिक बताया।
इस जजमेंट के बाद देश भर में 2018 के बाद जिन भी बी.एड. प्राइमरी क्लास में टीचर्स को विशेष रूप से सरकारी स्किल्स में नियुक्त किया गया था, सभी की नौकरी खतरे में डाल दी गई थी। हालाँकि 11 अगस्त को SC ने अपने फैसले में दो बातें स्पष्ट नहीं की थीं।
पहले पॉइंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश से क्लेरीफिकेशन दाखिल किया गया। निर्णय आया कि जिन लोगों की नौकरी 11 अगस्त से पहले लग गई है, उनकी नौकरी जारी रहेगी। लेकिन दूसरे बिंदु पर कोई चर्चा कोर्ट में नहीं हुई और इसका असर यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में बी.एड. फैक्ट्री की नौकरी हाथ से निकल गई।
राजस्थान उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच था मामला
एनसीटीई की अधिसूचना के बाद कई राज्यों में बी.एड. युवाओं को प्राइमरी क्लास के टीचर्स को सीधे तौर पर ऑफर दिया गया था। जिसमें पश्चिम बंगाल, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार शामिल थे। इसी बीच साल 2021 में राजस्थान सरकार ने भी शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए विज्ञापन जारी किया।
लेकिन इस विज्ञापन में प्राइमरी स्कूल में स्नातक के लिए बी.एड. क्राइटेरिया में भी शामिल नहीं किया गया। राजस्थान सरकार के इस विज्ञापन को देवेश शर्मा नाम के एक बी.एड. डिग्री धारक ने हाइकोर्ट में चुनौती दी। सर्वे के दौरान तीन अहम बातें सामने आईं:
और इस तरह के उच्च न्यायालय ने एनसीटीई के संविधान को खारिज कर दिया। यहां से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आया।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने एनसीटीई के बोर्ड को लेकर कहा कि इसे पहले जारी करने से पहले इसे जारी नहीं किया गया था।
आगे बढ़ने से पहले ये समझ लें कि राजस्थान हाईकोर्ट ने एनसीटीई के बदलावों में एमएचआरडी केब्रेज का नाम क्यों दिया…
डी.ई.आई.एड. चॉइस क्वालिफाई नहीं कर पा रहे थे टीईटी, केंद्र ने बदले नियम
9 मार्च, साल 2018 को एमएचआरडी के अधिकारियों की एक गैलरी हुई थी। इस मॉडल में काॅलेज स्कूल (KVS) की ओर से बताया गया कि वर्ष 2012 तक वो B.ED. युवाओं को प्राइमरी क्लास के टीचर्स खास तौर पर अपॉइंटमेंट कर रहे थे। लेकिन इसके बाद एनसीटीई के बोर्ड में बदलाव के बारे में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।
जिस कारण उन्हें क्वॉलिटी टीचर्स नहीं मिल रहे हैं। केवीएस ने तर्क दिया कि देश भर में प्राइवेट टीचर्स की करीब साढ़े सात लाख की पोस्ट है। इनसे D.EI.Ed. केवल 50% सीटें ही भर के ग्रामीण हैं। बाकी रह जाते हैं, क्योंकि डी.ई.ई.एड. योग्य शिक्षक पात्रता परीक्षा पास नहीं कर सकते।
ये स्थिति आगे बनी रही तो बच्चों की शिक्षा होगी प्रभावित। जिसके बाद यह तय हुआ कि KVS को B.Ed के साथ स्पेशल कंडिशन दिया गया। चॉकलेट की भर्ती की रकम दे दी जाए। ये मसला तत्काल एमएचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की टेबल में आया।
जावड़ेकर केवीएस के अलावा अन्य शिक्षकों में भी बी.एड. प्राइमरी क्लास में टीचर्स के विशेष रूप से अपॉइंटमेंट लेने के पक्ष में थे। 30 मई 2018 को एनसीटीई को एक पत्र में अपने डेटाबेस में बदलाव करने के निर्देश केंद्र सरकार की ओर से दिए गए। और इसके 30 दिन बाद यानी 29 जून को एनसीटीई ने अपने डेटाबेस में बदलाव कर दिया।
एनसीटीई को यह पत्र एमएचआरडी की ओर भेजा गया था। जल्द से जल्द बी.एड. परमाणु ऊर्जा निगम स्कूल में शेयरधारकों के लिए मंजूरी दी की बात कही गई थी।
एनसीटीई की मुख्य पैरवी यहां नहीं है
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई को लेकर हम सीधे बी.एड. की ओर से पिटिशन डिजाइन करने वाले देवेश शर्मा से बात की। देव ने हमें बताया कि एनसीटीई की ओर से प्रमुख वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता थे। लेकिन वो किसी भी क्षेत्र में नहीं। उनकी जगह जूनियर वकील वकीला टी. कारिया ने एनसीटीई का पक्ष रखा था।
इसका लाइव केस पिक्चर छापा गया। इसके अलावा कोर्ट ने कई बार एनसीटीई से मिनट्स ऑफ गड़बड़ी की मांग की थी। असल में, अपनी वेबसाइट में किसी भी तरह के बदलाव से पहले एनसीटीई को अपनी समिति की एक बैठक बुलानी पड़ती है। समिति के लोग बैठक में सभी निर्णय लेने के बाद कोई निर्णय नहीं लेते हैं।
लेकिन कोर्ट के सामने एनसीटीई ने इस बैठक के मिनट्स ऑफ मीटिंग प्रेजेंट नहीं कर पाई। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने एनसीटीई को भी नामांकन रद्द करने का आदेश दिया। इस फैसले को राजस्थान HC के फैसले और उसके पीछे दिए गए बिंदुओं को वैध माना गया है।
हालांकि गौर करने वाली बात ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि 2010 से 2012 तक बी.एड. बज़लिस को भी प्राइमरी क्लास में टीचर बनने के लिए एलिजिबल माना जाता था। इसी गाइड लाइन के तहत हीरियन स्कूल बी.एड. बज़लिस को नौकरी दे रही थी।
इसका उलटा जजमेंट क्रम 2018 से पहले तक लिखा है B.Ed. कभी-कभी प्राथमिक कक्षा में टीचिंग के लिए आवश्यक योग्यता शामिल नहीं की जाती है।
एनसीटीई के चेयरपर्सन बोले: हम शायद कोर्ट में अपना प्वाइंट नहीं रख पाएंगे
इस पूरे मुद्दे पर हमने एनसीटीई के वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर पंकज अरोड़ा से भी बात की। उन्होंने कहा- एनसीटीई गाइड लाइन सारी दुनिया को ध्यान में रखती है। शायद सुप्रीम कोर्ट में हम अपना पॉइंट ठीक से नहीं रख पाएंगे, इसलिए फैसला हमारे खिलाफ आया।
प्रोफेसर अरोड़ा ने आगे कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुका दिया गया है। अब हम आगे की ओर देख रहे हैं। अप्रैल से पहले ब्रिज कोर्स की तैयारी की जाएगी। ताकि 11 अगस्त 2024 से पहले जो शिक्षक हैं, उनकी नौकरी बच सके।
SC का निर्णय D.EI.Ed.अभ्यर्थी दक्षिणी HC पर आया
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में जब पूरे मामले में सुनवाई चल रही थी, तब 4 मई, 2023 को पिपरियात में टीचर्स भर्ती को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने अधिसूचना जारी की थी। इसमें बी.एड. शिक्षकों को भी एग्जॉम के लिए आमंत्रित किया गया। नोटिफिकेशन जारी होने के एक महीने बाद 10 जून 2023 को एग्ज़ाम हुआ और 2 जुलाई को मेरिट लिस्ट जारी की गई।
इसके अगले महीने सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया। जिसके बाद D.EI.Ed.Candidate सीधे हाई कोर्ट पहुंच गया। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सुनाया गया, HC ने B.ED.उम्मीदवारों को भी अयोग्य घोषित करने का आदेश दिया। इस फैसले को बी.एड.कैंडिडेट्स ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
बिस्तर। लोगों को केवल अस्थायी राहत ही मिली
यहां सबसे पहले दफा सुप्रीम कोर्ट के सामने दूसरे बिंदु (फैसले के पहले जो भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी, उनके क्या फैसले होंगे) पर फोकस किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि बी.एड. बज़लिस को बाहर करना सही नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने अनंतिम राहत देते हुए ये शर्त रखी कि इस मामले में अंतिम फैसला कोर्ट का ही होगा।
कांग्रेस सरकार ने सितंबर 2023 में अंतिम विधानसभा चुनाव के लिए बी.एड.उम्मीदवारों को ऑफर दिया। इस ऑफर में लेटर में टर्म एंड कंडीशन के तौर पर 13 प्वाइंट लिखे गए थे। अंतिम बिंदु पर नौकरी का भविष्य उच्च न्यायालय के अंतिम आदेश पर छोड़ दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने बी.एड. बज़मालिस को अंतरिम राहत दी गई थी।
HC कोर्ट ने B.Ed. मज़बूरी के ख़िलाफ़ दिया गया फ़ैसला
उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2024 में अपना अंतिम निर्णय लिया। ये फैसला बी.एड. मधुमेह के विरुद्ध दिया गया। उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान HC में हुई प्रोसिडिंग का समापन किया है। इसके बाद फिर बी.एड. लड़ियाँ एससी क्षेत्र, लेकिन इस बार कोई राहत नहीं एससी की ओर से बी.एड. भिन्न-भिन्न रचनाएँ नहीं दी गईं।
अगले पार्ट में आपको वैज्ञानिक नौकरी के बाद की कहानी और आगे इस मामले में क्या हो सकता है।